कौम पे मेरी मेरे मौला कैसी मुश्किल आई है
ग़ैरत का एहसास नहीं हे भाई का दुश्मन भाई है
करबल की तारिख में हमने इस मंज़र को देखा हे
जितने सच्चे लोग हैं उनके हिस्से में तन्हाई है
जिस गुलशन का पत्ता पत्ता प्यार की बातें करता था
अम्न के उस गुलशन में आखिर किसने आग लगायी है
कल मुन्शिफ के सामने ये सच्चाई जाने वाली थी
जिसकी तुमने चोराहे पर जिंदा लाश जलाई है
जब भी कोई बम फटता हे नाम हमारा आता है
"हसरत" ये इलज़ाम नहीं हे बलके इक सच्चाई है