खफा खफा ही लगे

on Monday 28 September 2015
पिला दे ज़हर भी तू तो मुझे  दवा  ही लगे 
तेरा कसूर भी मुझको तेरी अदा  ही लगे 

हबीब बनता हे रखता हे बुग्ज़ दिल में मगर 

हर एक उसकी दुआ मुझको बद्दुआ ही लगे 

मिला हे हंस के वो मुझसे मेरे गले भी लगा 

मगर मुझे तो वो अब भी खफा खफा ही लगे 

गुज़र गया हे ज़माना बहार  देखे हुए 

ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे 

अजीब हाल हे दिल का न पूँछ मेरे सनम

मेरे करीब हे लेकिन जुदा जुदा ही लगे 

यही दुआ हे ये हसरत हे आरज़ू हे मेरी 

गुलाब जैसा ये चेहरा खिला खिला ही लगे