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तेरे दीदार से पहले

on Monday 13 February 2017
निगाहें नाज़ से पहले लबो रुखसार से पहले 
हसीं थी सारी दुनिया ये जमाले यार से पहले 

सितारों के नजारों को हसीं समझा किये बरसों 
हक़ीक़त से ही ग़ाफिल थे तेरे दीदार से पहले 

मुहब्बत आशना इसको मुहब्बत ही बताते हैं 
सनम नाराज़ होते हैं वफ़ा ओ प्यार से पहले 

ख़ुदा मालूम मरता या के कुछ दिन और जी लेता 
मसीहा बनके मिलते तो सही बीमार से पहले 

कहा उसने न छूना तुम मेरे नजदीक मत आना 
कभी इनकार से पहले कभी इक़रार से पहले 

तुझे देखा तो रुखसत हो गए होशो ख़िरद मेरे 
सुकूने क़ल्ब हासिल था तेरे दीदार से पहले 

बिठाकर सामने उनको करी हे गुफ्तगू हसरत 
बहुत बातें करीं मैंने दरो दीवार से पहले 

दुआ नहीं देता

on Sunday 12 February 2017
दिल से कोई दुआ नहीं देता
दर्दे दिल की दवा नहीं देता

कितना संगदिल हे वो सनम मेरा 
कुछ भी ग़म के सिवा नहीं देता 

मेरी क़िस्मत का डूबता सूरज 
रौशनी का पता नहीं देता 

लोग कहते हैं तू मसीहा है 
मुझको क्यों कर शिफ़ा नहीं देता 

सबकी उम्मीद बर नहीं आती 
सबको सब कुछ ख़ुदा नहीं देता 

एक ख़ूबी हे उसमे ए हसरत 
वो किसी को दग़ा नहीं देता 


तेरे बिन ज़िन्दगी अब गुनाह हो गयी

on Monday 6 February 2017
तुझसे उल्फत सनम बेपनाह हो गयी 
तेरे बिन ज़िन्दगी अब गुनाह हो गयी


तूने मुड़ के जो देखा मुझे इक नज़र 
नींद रातों की मेरी तबाह हो गयी


धड़कनें रुक गयीं वक़्त थम सा गया 
मेरी जानिब जब उनकी निगाह हो गयी


तुम मेरे हो गए मैं तुम्हारा हुआ 
आँखों आँखों में यकदम सलाह हो गयी


नाम तेरा लिया हिचकियाँ रुक गयीं 
याद करते हो हिचकी गवाह हो गयी


तेरे हसरत को बस चैन आ जायेगा 
तेरी आगोश में गर पनाह हो गयी 

तुम्हारा नाम ले लेकर

on Thursday 25 August 2016
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 

हमारा दिल धड़कता है तुम्हारा नाम ले लेकर 
कोई अरमां मचलता है तुम्हारा नाम ले लेकर 

तुम्हारे ही तख़य्युल में गुज़र जाती है शब् सारी 
हमारा दिन निकलता है तुम्हारा नाम ले लेकर 

दिल ए  बेकल को समझाना बहुत मुश्किल हुआ अब तो 
कलेजे से निकलता है तुम्हारा नाम ले लेकर 

ये आशिक़ है इसे ज़ुल्फों के साये में छिपा लीजे 
दीवाना है संभालता है तुम्हारा नाम ले लेकर 

मुक़द्दर की बुलंदी ने बनाया ........  तुमको 
हमारा काम चलता है तुम्हारा नाम ले लेकर 

तुम्हें अपना बनाने की क़सम खाई है हसरत ने 
दुआ में हाथ मलता है तुम्हारा नाम ले लेकर 



तख़य्युल ----ख़याल 
फैज़िया -----क़ामयाब 
बेकल -------बैचेन 

अच्छे दिन आयेंगे

on Thursday 10 March 2016
212   212     212      212
फाइलुन फाइलुन  फाइलुन फाइलुन
(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन सालिम )



दिल में तेरे सिवा दूसरा कौन है 
तुझको मेरी तरह चाहता कौन है 

साथ मेरे अगर तुझको रहना नहीं 
जा चला जा तुझे रोकता कौन है 

खून किसका बहा किसका घर जल गया 
अब वतन में मेरे सोचता कौन हैं 

अच्छे दिन आयेंगे काला धन आएगा 
इस क़दर दोस्तों फेंकता कौन है 

दिल के आँगन में ये दर्द की शाख़ पर 
फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है 

अब न हसरत कोई मेरी तेरे सिवा 
रब से हर दम तुझे मांगता कौन है 

जो तेरे आस्तां से उठता है

on Monday 1 February 2016
212   212     1222

ज़ुल्म जब जब जहाँ से उठता है 
ज़लज़ला फिर वहां से उठता है 

रिज्क इतना ही था यहाँ अपना 
काफ़ला अब यहाँ से उठता है 

फिर किसी का जला है घर शायद 
ये  धुआं सा कहाँ से उठता है 

वो कहीं भी सुकूं नहीं पाता 
जो तेरे आस्तां से उठता है 

कौन करता है अब वफ़ादारी 
अब भरोसा जहाँ से उठता है 

अब्र तो दूर तक नहीं हसरत 
शोर क्यों आसमां से उठता है 


ईमान कहता है

on Sunday 31 January 2016




१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 
रसूले पाक का हमसे यही फ़रमान कहता है 
वतन पे जान दे देना यही ईमान कहता है 

जो मारे बेगुनाहों को मुसलमां हो नहीं सकता 
ज़रा तुम खोल कर देखो यही क़ुरआन कहता है 

झुके हैं ना झुकेंगे हम सितमगर सामने तेरे
हुई थी जंगे करबल जिस पे वो मैदान कहता है 

मेरे असलाफ़ ने सींचा वतन को खून से अपने 
उठाकर देख लो तारीख़ हिन्दुस्तान कहता है 

मोहब्बत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती 
मेरा दिल हर घडी मुझसे ये  मेरी जान कहता है 

हसी मेरी उड़ाता है या मुझसे प्यार करता है 
मेरा साथी कभी दानिश कभी  नादान कहता है 

वतन पे हक़ बराबर है हमारा भी तुम्हारा भी 
यही इन्साफ है हसरत यही मीज़ान कहता है 

वफ़ा कैसे मिलेगी

on Saturday 16 January 2016

2211 2211 2211 22
नादान भला तू ही बता कैसे मिलेगी 
आंधी से चराग़ों को वफ़ा कैसे मिलेगी 

मुंसिफ़ भी उसी का है उसी की है अदालत 
क़ातिल को गुनाहों की सज़ा कैसे मिलेगी 

हर गुल को सिखा देते हो नफ़रत का सलीक़ा 
गुलशन से तुम्हें बू ए वफ़ा कैसे मिलेगी 

तडपेगा बहुत रोयेगा  दुनिया में सितमगर 
जल्लाद को आसान क़ज़ा कैसे मिलेगी 

ये सोच के कल रात को रोया हूँ बहुत मैं 
दिल तोड़ने वाले को दुआ कैसे मिलेगी 

हसरत तू बता मैं तो बहुत ढूंढ चूका हूँ 
माँ जैसी ज़माने में वफ़ा कैसे मिलेगी 

मोहब्बत कौन करता है

कराके मुल्क में दंगे हुकूमत कौन करता है 
पता सबको है नफरत की सियासत कौन करता है 

इधर नफरत के सौदागर उधर सरहद के रखवाले 
वतन तू ही बता तेरी हिफाज़त कौन करता है 

पुराने हो गए किस्से सभी फ़रहाद शीरीं के 
फ़कत जिस्मों की चाहत है मोहब्बत कौन करता है 

यही हालात कहते हैं यही मंज़र बताते हैं 
ग़रीबों की ज़माने में हिमायत कौन करता है 

अदा हमने किये हैं साया ए तलवार में सजदे 
ख़ुदा की इस तरह जग में इबादत कौन करता है 

सभी मशरूफ़ हैं मक्कारियों की चालसाज़ी में 
कहाँ अखलाक़ वाले हैं मुरव्वत  कौन करता है

सभी अहले वतन खुश हों रहे अमनो अमां कायम 
तमान्ना किसकी ऐसी है ये हसरत कौन करता है 

अब संवरता है कौन दुनिया में

on Thursday 14 January 2016
इश्क़ करता है कोन  दुनिया में
दिल से मरता है कोन दुनिया में


मुफ़्त शेखी बगारने वाले 
तुझसे डरता है कोन दुनिया में 

महवे हैरत है आसमां मुझ पर 
आहें भरता है कोन दुनिया में 

आईना बन गए हैं हम लेकिन 
अब संवरता है कौन दुनिया में 

सबको करना है कूच दुनिया से 
कब ठहरता है कौन दुनिया में 

अब न मुंसिफ़ कोई उमर जैसा 
अद्ल करता है कौन दुनिया में 

दिल की गहराई से तुझे हसरत 
याद करता है कौन दुनिया में 

खफा खफा ही लगे

on Monday 28 September 2015
पिला दे ज़हर भी तू तो मुझे  दवा  ही लगे 
तेरा कसूर भी मुझको तेरी अदा  ही लगे 

हबीब बनता हे रखता हे बुग्ज़ दिल में मगर 

हर एक उसकी दुआ मुझको बद्दुआ ही लगे 

मिला हे हंस के वो मुझसे मेरे गले भी लगा 

मगर मुझे तो वो अब भी खफा खफा ही लगे 

गुज़र गया हे ज़माना बहार  देखे हुए 

ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे 

अजीब हाल हे दिल का न पूँछ मेरे सनम

मेरे करीब हे लेकिन जुदा जुदा ही लगे 

यही दुआ हे ये हसरत हे आरज़ू हे मेरी 

गुलाब जैसा ये चेहरा खिला खिला ही लगे 

हो के मजबूर उसूलों से बग़ावत की है

on Thursday 16 April 2015









  जाने  क्या सोच के उसने ये हिमाक़त की है 
   हो के दरिया जो समंदर से अदावत  की है

 खींच लायी हे तेरे दर पे ज़रुरत मुझको 
हो के मजबूर उसूलों से  बग़ावत की है 

हमने ख़ारों पे बिछाया हे बिछोना अपना 
हमने तलवारों के साये में इबादद की है 

अच्छे हमसाये की तालीम मिली हे हमको 
हमने जाँ दे के पडोसी की हिफाज़त की है 

आज आमाल ही पस्ती का  सबब  हैं  वरना
हमने हर दौर में दुनिया पे हुकूमत की है 

दम मेरा कूच -ए -सरकार  जाकर निकले 
 इस तमन्ना के सिवा  कुछ भी न हसरत की है   

अश्क़ों की धार में

on Thursday 5 March 2015
सोचा था हमने फूल खिलेंगे बहार में
सींचा चमन लहू से इसी ऐतबार में

दिल भी नज़र भी ख़्वाब भी सब आपके हुए
कुछ भी नहीं  हे अब तो मेरे  इख्तियार  में

ए  सग तेरे  नसीब का  क्या तज्क़रा  करूं
तू  आये  जाए  रोज़  सनम  के  दयार  में

होशो हवास अक्लो  खिरद हसरतें तमाम
सब  कुछ  लुटा  दिया  हे  तेरे  इंतज़ार में

कोशिश अदू की नीचा दिखाने की हे मगर
हरगिज़  कमी  न  आएगी  मेरे  वक़ार में

आया  वफ़ा की  राह  में  कैसा मकाम  ये
अब  ज़िन्दगी  खड़ी हे ग़मों की क़तार में

कोशिश के बावजूद भी कटती नहीं हे शब
उठ  उठ  के  बेठता  हूँ  तेरे  इंतज़ार  में

हसरत वफ़ा की राह में सब कुछ लुटा दिया
सपने  तमाम  बह  गए  अश्क़ों की धार में

हयात हमने गुज़री हे इन्तेहाँ की तरह

लहू से जिसको के सींचा था बागबां की तरह
वही चमन नज़र आता हे अब खिज़ां की तरह 

हवा का झोंका भी आया तो रोक लूँगा उसे 
खड़ा हूँ तेरी हिफाज़त में पासबां की तरह 

                                                  कभी हयात में हमको सुकूं  मिला ही नहीं                                                     के रोज़ो शब् नज़र आते हैं कारवां की तरह 

खुदा की याद में खुद को मिटा लिया जबसे 
मेरा वजूद ज़मीन पर हे आसमां की तरह 

ये तज़र्बे  बड़ी मुश्किल से पाये हैं हमने
हयात हमने गुज़ारी हे इन्तेहाँ की तरह 

वो जिसको लोग बुरा आदमी बताते थे 
सुलूक़ मुझसे किया उसने मेहरबां की तरह 

तमाम उम्र गुज़ारी हे मैंने ख़्वाबों में 
मुझे लगे हे हकीकत भी अब गुमां की तरह 

ज़ुबान खोल दी मैंने तो तेरी खैर नहीं 
इसी सबब से खड़ा हूँ मैं बेज़ुबां की तरह 

वो जिसके वास्ते खुद को मिटा दिया हमने 
भुला दिया हे हमें उसने दास्ताँ की तरह 

अजीब हाल हे हसरत जहाँ के लोगों का 
यहाँ यहाँ की तरह हैं वहां वहां की तरह 
  

जिंदा लाश जलाई है

on Tuesday 21 October 2014

कौम पे मेरी मेरे मौला कैसी मुश्किल आई है
ग़ैरत का एहसास नहीं हे भाई का दुश्मन भाई है


करबल की तारिख में हमने इस मंज़र को देखा हे
जितने सच्चे लोग हैं उनके हिस्से में तन्हाई है


जिस गुलशन का पत्ता पत्ता प्यार की बातें करता था
अम्न के उस गुलशन में आखिर किसने आग लगायी है


कल मुन्शिफ के सामने ये सच्चाई जाने वाली थी
जिसकी तुमने चोराहे पर जिंदा लाश जलाई है


जब भी कोई बम फटता हे नाम हमारा आता है
"हसरत" ये इलज़ाम नहीं हे बलके इक सच्चाई है  

जब से गैरों के घर आना जाना हुआ

on Friday 12 September 2014
                    


                                  जब मेरी जीस्त में उनका आना हुआ

                                  वादिये दिल  का मौसम सुहाना हुआ

                                  जब से वो बस गए आके दिल में मेरे
                                  दिल मेरा इक हसीं आशियाना हुआ

                                  कब से दिल को बचाकर रखा था मगर
                                  उनकी नज़रों का पल में निशाना हुआ

                                  बदले बदले से वो मुझको आये नज़र
                                  जब से ग़ैरों के घर आना जाना हुआ

                                 इस क़दर गिर गया वो नज़र से मेरी
                                अब तो मुश्किल ये रिश्ता निभाना हुआ

                                वो भी क्या दिन थे जब साथ थे वो मेरे
                                अब तो हसरत ये किस्सा पुराना हुआ 

बहल जायेगा दिल बहलते बहलते

on Saturday 23 February 2013
इन आँखों से आंसू निकलते निकलते
कटी  रात करवट बदलते बदलते

मोहब्बत हे मुझसे तो कह दो किसी दिन
इशारे से छत  पर टहलते टहलते

मोहब्बत की राहों  में  कांटे मिलेंगे
उठाना क़दम तुम संभलते संभलते     

यकीं हे  मुझको के इक रोज़ खुद ही
बहल जायेगा दिल बहलते बहलते

मेरी याद जब जब सताएगी हसरत
वो रोयेंगे आँखें मसलते मसलते 

आशना कर दे

on Sunday 2 December 2012
अब तो पूरी ये आरजू कर दे
मैँरे दामन मे तू खुशी भर दे

दर्द देकर तू अपनी चाहत का
मुझको उल्फत से आशना कर दे

कब से हैं मुंतज़िर मेरी आखें
इन चिरागोँ मेँ रोशनी भर दे

चँद कतरोँ से अब मैँरी हरगिज
प्यास बुझती नहीँ समँदर दे

या खुदा अब तो उनके कूचे मेँ
खत्म हसरत की जिन्दगी कर दे 

उल्फत की निशानी

on Tuesday 30 October 2012
हर दिल में मुहब्बत की अब शमअ जलानी हे
अब हमको तअस्सुब की ये आग बुझानी हे

नफरत से न तुम देखो हमको ऐ जहाँ वालों
हमसे ही तो उल्फत के दरिया में रवानी हे

हे उसके ही हाथों में इज्ज़त भी ओ ज़िल्लत भी
ये कौल नहीं मेरा आयाते कुरानी हे

क्या खूब अजूबा हे देखो तो जहाँ वालों
पत्थर की ईमारत भी उल्फत की निशानी हे

अश्कों के तलातुम को रोकोगे भला केसे
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी हे

इस ग़म का सबब क्या हे लो तुम को बताता हूँ
हसरत के भी सीने में इक याद पुरानी हे

शायरी मिल गयी

on Saturday 13 October 2012
तुम मिले तो मुझे हर ख़ुशी मिल गयी 
यूँ लगा के मुझे जिंदगी मिल गयी 

कांच सा टूटकर दिल बिखर जायेगा 
अब इसे गर तेरी बेरुखी मिल गयी 

तेरी चाहत ने दिल को बनाया हे दिल 
क्या हुआ गर मुझे बेकली मिल गयी 

इस तरह दिल को रोशन किया आपने 
यूँ लगा रात को चांदनी मिल गयी 

सुन के आवाज़ तेरी मुझे यूँ लगा 
मेरे नगमो को अब रागनी मिल गयी 

तुझको देख तो दिल से ये आई सदा 
मुझको हसरत मेरी शायरी मिल गयी