ईमान कहता है

on Sunday 31 January 2016




१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 
रसूले पाक का हमसे यही फ़रमान कहता है 
वतन पे जान दे देना यही ईमान कहता है 

जो मारे बेगुनाहों को मुसलमां हो नहीं सकता 
ज़रा तुम खोल कर देखो यही क़ुरआन कहता है 

झुके हैं ना झुकेंगे हम सितमगर सामने तेरे
हुई थी जंगे करबल जिस पे वो मैदान कहता है 

मेरे असलाफ़ ने सींचा वतन को खून से अपने 
उठाकर देख लो तारीख़ हिन्दुस्तान कहता है 

मोहब्बत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती 
मेरा दिल हर घडी मुझसे ये  मेरी जान कहता है 

हसी मेरी उड़ाता है या मुझसे प्यार करता है 
मेरा साथी कभी दानिश कभी  नादान कहता है 

वतन पे हक़ बराबर है हमारा भी तुम्हारा भी 
यही इन्साफ है हसरत यही मीज़ान कहता है 

मनक़बत

on Tuesday 19 January 2016


१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 
लबों पे है मेरे हरदम तराना गौस ए आज़म का 
दीवाना हूँ दीवाना हूँ दीवाना गौस ए आज़म का 

करिश्मा ऐसा हे जिसको न भूलेगी कभी दुनिया 
फ़क़त ठोकर से मुर्दों को जिलाना गौस ए आज़म का  

अगर जलता है तो जलता रहे नज्दी ज़माने में 
न छोड़ेंगे कभी नारा लगाना गौस ए आज़म का 

ये चोखट क़ातिबे तक़दीर दुनिया में बनी मेरी 
न छोडूंगा कभी भी आस्ताना गौस ए आज़म का 

अजब है मामला उनका अजब है कैफ़ियत उनकी 
ज़मीनों अर्श हैं दोनों ठिकाना गौस ए आज़म का 

ब फज्ले रब वो भरते हैं सभी की झोलियाँ हसरत 
सवाली है तभी तो ये ज़माना गौस ए आज़म का 

नात शरीफ़


दुनिया मैरे आक़ा की है उक़बा मेरे आक़ा का 
बंटता है दोनों आलम में सदक़ा मैरे आक़ा का 

रोयेंगे अपनी क़िस्मत पे सारे नज्दी महशर में 
रोज़े महशर जब देखेंगे जलवा मेरे आक़ा का 

आपकी अज़मत पे क़ुर्बा है बच्चा बच्चा मिल्लत का 
होता है सारे आलम में चर्चा मेरे आक़ा का 

मौत मुझे आगोश में लेने पास मेरे जब भी आये 
उस दम मेरे विर्दे जुबां हो कलमा मेरे आक़ा का 

अर्शे आज़म रब से बोला तेरी शफ़क़त के सदके 
तेरे करम से चूम लिया है तलवा मेरे आक़ा का 

उम्मत मेरी बख्श दे मौला बख्श दे मेरी उम्मत को 
हश्र में सबको बख्शायेगा सजदा मेरे आक़ा का 

दुनिया में भी परचम उनका  हसरत देखो औज़ पे है 
हश्र के दिन भी लहराएगा झंडा मेरे आक़ा का 


वफ़ा कैसे मिलेगी

on Saturday 16 January 2016

2211 2211 2211 22
नादान भला तू ही बता कैसे मिलेगी 
आंधी से चराग़ों को वफ़ा कैसे मिलेगी 

मुंसिफ़ भी उसी का है उसी की है अदालत 
क़ातिल को गुनाहों की सज़ा कैसे मिलेगी 

हर गुल को सिखा देते हो नफ़रत का सलीक़ा 
गुलशन से तुम्हें बू ए वफ़ा कैसे मिलेगी 

तडपेगा बहुत रोयेगा  दुनिया में सितमगर 
जल्लाद को आसान क़ज़ा कैसे मिलेगी 

ये सोच के कल रात को रोया हूँ बहुत मैं 
दिल तोड़ने वाले को दुआ कैसे मिलेगी 

हसरत तू बता मैं तो बहुत ढूंढ चूका हूँ 
माँ जैसी ज़माने में वफ़ा कैसे मिलेगी 

मोहब्बत कौन करता है

कराके मुल्क में दंगे हुकूमत कौन करता है 
पता सबको है नफरत की सियासत कौन करता है 

इधर नफरत के सौदागर उधर सरहद के रखवाले 
वतन तू ही बता तेरी हिफाज़त कौन करता है 

पुराने हो गए किस्से सभी फ़रहाद शीरीं के 
फ़कत जिस्मों की चाहत है मोहब्बत कौन करता है 

यही हालात कहते हैं यही मंज़र बताते हैं 
ग़रीबों की ज़माने में हिमायत कौन करता है 

अदा हमने किये हैं साया ए तलवार में सजदे 
ख़ुदा की इस तरह जग में इबादत कौन करता है 

सभी मशरूफ़ हैं मक्कारियों की चालसाज़ी में 
कहाँ अखलाक़ वाले हैं मुरव्वत  कौन करता है

सभी अहले वतन खुश हों रहे अमनो अमां कायम 
तमान्ना किसकी ऐसी है ये हसरत कौन करता है 

अब संवरता है कौन दुनिया में

on Thursday 14 January 2016
इश्क़ करता है कोन  दुनिया में
दिल से मरता है कोन दुनिया में


मुफ़्त शेखी बगारने वाले 
तुझसे डरता है कोन दुनिया में 

महवे हैरत है आसमां मुझ पर 
आहें भरता है कोन दुनिया में 

आईना बन गए हैं हम लेकिन 
अब संवरता है कौन दुनिया में 

सबको करना है कूच दुनिया से 
कब ठहरता है कौन दुनिया में 

अब न मुंसिफ़ कोई उमर जैसा 
अद्ल करता है कौन दुनिया में 

दिल की गहराई से तुझे हसरत 
याद करता है कौन दुनिया में