जिंदा लाश जलाई है

on Tuesday 21 October 2014

कौम पे मेरी मेरे मौला कैसी मुश्किल आई है
ग़ैरत का एहसास नहीं हे भाई का दुश्मन भाई है


करबल की तारिख में हमने इस मंज़र को देखा हे
जितने सच्चे लोग हैं उनके हिस्से में तन्हाई है


जिस गुलशन का पत्ता पत्ता प्यार की बातें करता था
अम्न के उस गुलशन में आखिर किसने आग लगायी है


कल मुन्शिफ के सामने ये सच्चाई जाने वाली थी
जिसकी तुमने चोराहे पर जिंदा लाश जलाई है


जब भी कोई बम फटता हे नाम हमारा आता है
"हसरत" ये इलज़ाम नहीं हे बलके इक सच्चाई है