कुछ ऐसा फैज़ मिलता हे रज़ा के आस्ताने से
अकीदा ठोस होता हे बरेली आने जाने से
रज़ा का नाम चमका हे मदीने की तजल्ली से
मिटा हे न मिटेगा ये किसी के भी मिटाने से
मैं रज़वी हूँ मुझे दुनिया रज़ा का शेर कहती हे
ए नज्दी तू न टकराना रज़ा के इस दीवाने से
ए नज्दी तू न टकराना रज़ा के इस दीवाने से
ये वो अहमद रज़ा हे जिसने निस्बत को ज़िया बख्शी
लिपट कर खूब रोया हे नबी के आस्ताने से
ज़माना इस लिए अहमद रज़ा को याद करता हे
बला की उनको निस्बत थी मोहम्मद के घराने से
लिपट कर खूब रोया हे नबी के आस्ताने से
ज़माना इस लिए अहमद रज़ा को याद करता हे
बला की उनको निस्बत थी मोहम्मद के घराने से
मुजद्दिद तो बहुत गुज़रे ज़माने से मगर हसरत
मेरे अहमद रज़ा जैसा नहीं गुज़रा ज़माने से
मेरे अहमद रज़ा जैसा नहीं गुज़रा ज़माने से