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नात शरीफ़

on Tuesday 19 January 2016

दुनिया मैरे आक़ा की है उक़बा मेरे आक़ा का 
बंटता है दोनों आलम में सदक़ा मैरे आक़ा का 

रोयेंगे अपनी क़िस्मत पे सारे नज्दी महशर में 
रोज़े महशर जब देखेंगे जलवा मेरे आक़ा का 

आपकी अज़मत पे क़ुर्बा है बच्चा बच्चा मिल्लत का 
होता है सारे आलम में चर्चा मेरे आक़ा का 

मौत मुझे आगोश में लेने पास मेरे जब भी आये 
उस दम मेरे विर्दे जुबां हो कलमा मेरे आक़ा का 

अर्शे आज़म रब से बोला तेरी शफ़क़त के सदके 
तेरे करम से चूम लिया है तलवा मेरे आक़ा का 

उम्मत मेरी बख्श दे मौला बख्श दे मेरी उम्मत को 
हश्र में सबको बख्शायेगा सजदा मेरे आक़ा का 

दुनिया में भी परचम उनका  हसरत देखो औज़ पे है 
हश्र के दिन भी लहराएगा झंडा मेरे आक़ा का 


मदीने में

on Monday 16 November 2015

तमन्ना है यही मेरी यही हसरत है सीने में 
मुझे उम्मीद है आक़ा बुलाएँगे मदीने में 

नहीं मुमकिन डुबो दे ये भंवर मेरे सफीने को 
नबी के नाम का परचम लगाया है सफीने में 

अक़ीदत से जो मांगोगे मिलेगा बिलयकीं तुमको 
कमी थी न कमी है मेरे आका के खजीने में 

लगा ले गर इसे दुल्हन महक जाएँ कई नस्लें 
बसी है ऐसी खुशबु मेरे आक़ा के पसीने में 

मुझे अपने ग़ुलामों की ग़ुलामी में सदा रखना 
मैं पत्थर हूँ मेरे आक़ा बदल दीजे नगीने में 

कोई हसरत नहीं बाक़ी मेरे दिल में सिवा इसके 
मेरी जब भी क़ज़ा आये तो आये बस मदीने में 

कोई हसरत नहीं आक़ा मेरे दिल में सिवा इसके 
मुझे भी मौत से पहले बुला लेना मदीने में 

नात ए पाक

on Saturday 8 August 2015









ये जो तख्लीके दुनिया हे नबी की ही बदोलत है 
सना ए मुस्तफ़ा करना वज़ीफ़ा हे इबादत है 

ख़ुदा को हमने जाना हे मुहम्मद के बताने से 
उन्ही का ही करम हे ये ,ये उनकी ही इनायत है 

जहाँ में ख़ूब जपता हे तू माला शिर्क़ो बिदअत की 
तू सुन ले ग़ोर से नज्दी तेरी महशर में शामत है 

ज़ियारत ख़्वाब में होती हे उनको ही शहे दीं की 
दरुदे पाक के नगमे सजाना जिनकी आदत है 

फ़रिश्ते अर्श से करने ज़ियारत इनकी  आते हैं
गुलामाने मोहम्मद की ये अज़मत शानो शोक़त है 

ख़ुदा ने कर दिया आला मकामे आले अतहर को 
मोहम्मद के घराने की तो दो आलम में शोहरत है 

वहाँ खैरात बंटती हे यहाँ भी भीख मिलती है 
वहाँ उनका हे मोज़ज़ा यहाँ इनकी करामत है 

मोहम्मद के तवस्सुल से ख़ुदा हमको मिला हसरत 
जो आशिक़ हैं मोहम्मद के उन्ही के नाम जन्नत है