बंटता है दोनों आलम में सदक़ा मैरे आक़ा का
रोयेंगे अपनी क़िस्मत पे सारे नज्दी महशर में
रोज़े महशर जब देखेंगे जलवा मेरे आक़ा का
आपकी अज़मत पे क़ुर्बा है बच्चा बच्चा मिल्लत का
होता है सारे आलम में चर्चा मेरे आक़ा का
मौत मुझे आगोश में लेने पास मेरे जब भी आये
उस दम मेरे विर्दे जुबां हो कलमा मेरे आक़ा का
अर्शे आज़म रब से बोला तेरी शफ़क़त के सदके
तेरे करम से चूम लिया है तलवा मेरे आक़ा का
उम्मत मेरी बख्श दे मौला बख्श दे मेरी उम्मत को
हश्र में सबको बख्शायेगा सजदा मेरे आक़ा का
दुनिया में भी परचम उनका हसरत देखो औज़ पे है
हश्र के दिन भी लहराएगा झंडा मेरे आक़ा का