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ज़ुल्म जब जब जहाँ से उठता है
ज़ुल्म जब जब जहाँ से उठता है
ज़लज़ला फिर वहां से उठता है
रिज्क इतना ही था यहाँ अपना
काफ़ला अब यहाँ से उठता है
फिर किसी का जला है घर शायद
ये धुआं सा कहाँ से उठता है
वो कहीं भी सुकूं नहीं पाता
जो तेरे आस्तां से उठता है
कौन करता है अब वफ़ादारी
अब भरोसा जहाँ से उठता है
अब्र तो दूर तक नहीं हसरत
शोर क्यों आसमां से उठता है