अश्क़ों की धार में

on Thursday 5 March 2015
सोचा था हमने फूल खिलेंगे बहार में
सींचा चमन लहू से इसी ऐतबार में

दिल भी नज़र भी ख़्वाब भी सब आपके हुए
कुछ भी नहीं  हे अब तो मेरे  इख्तियार  में

ए  सग तेरे  नसीब का  क्या तज्क़रा  करूं
तू  आये  जाए  रोज़  सनम  के  दयार  में

होशो हवास अक्लो  खिरद हसरतें तमाम
सब  कुछ  लुटा  दिया  हे  तेरे  इंतज़ार में

कोशिश अदू की नीचा दिखाने की हे मगर
हरगिज़  कमी  न  आएगी  मेरे  वक़ार में

आया  वफ़ा की  राह  में  कैसा मकाम  ये
अब  ज़िन्दगी  खड़ी हे ग़मों की क़तार में

कोशिश के बावजूद भी कटती नहीं हे शब
उठ  उठ  के  बेठता  हूँ  तेरे  इंतज़ार  में

हसरत वफ़ा की राह में सब कुछ लुटा दिया
सपने  तमाम  बह  गए  अश्क़ों की धार में

हयात हमने गुज़री हे इन्तेहाँ की तरह

लहू से जिसको के सींचा था बागबां की तरह
वही चमन नज़र आता हे अब खिज़ां की तरह 

हवा का झोंका भी आया तो रोक लूँगा उसे 
खड़ा हूँ तेरी हिफाज़त में पासबां की तरह 

                                                  कभी हयात में हमको सुकूं  मिला ही नहीं                                                     के रोज़ो शब् नज़र आते हैं कारवां की तरह 

खुदा की याद में खुद को मिटा लिया जबसे 
मेरा वजूद ज़मीन पर हे आसमां की तरह 

ये तज़र्बे  बड़ी मुश्किल से पाये हैं हमने
हयात हमने गुज़ारी हे इन्तेहाँ की तरह 

वो जिसको लोग बुरा आदमी बताते थे 
सुलूक़ मुझसे किया उसने मेहरबां की तरह 

तमाम उम्र गुज़ारी हे मैंने ख़्वाबों में 
मुझे लगे हे हकीकत भी अब गुमां की तरह 

ज़ुबान खोल दी मैंने तो तेरी खैर नहीं 
इसी सबब से खड़ा हूँ मैं बेज़ुबां की तरह 

वो जिसके वास्ते खुद को मिटा दिया हमने 
भुला दिया हे हमें उसने दास्ताँ की तरह 

अजीब हाल हे हसरत जहाँ के लोगों का 
यहाँ यहाँ की तरह हैं वहां वहां की तरह