सोचा था हमने फूल खिलेंगे बहार में
सींचा चमन लहू से इसी ऐतबार में
दिल भी नज़र भी ख़्वाब भी सब आपके हुए
कुछ भी नहीं हे अब तो मेरे इख्तियार में
ए सग तेरे नसीब का क्या तज्क़रा करूं
तू आये जाए रोज़ सनम के दयार में
होशो हवास अक्लो खिरद हसरतें तमाम
सब कुछ लुटा दिया हे तेरे इंतज़ार में
कोशिश अदू की नीचा दिखाने की हे मगर
हरगिज़ कमी न आएगी मेरे वक़ार में
आया वफ़ा की राह में कैसा मकाम ये
अब ज़िन्दगी खड़ी हे ग़मों की क़तार में
कोशिश के बावजूद भी कटती नहीं हे शब
उठ उठ के बेठता हूँ तेरे इंतज़ार में
हसरत वफ़ा की राह में सब कुछ लुटा दिया
सपने तमाम बह गए अश्क़ों की धार में